मन जाणे सब बात जांणत ही औगुन करै।
काहे की कुसलात कर दीपक कूंवै पड़े।
मन सब बातों को जानता है जानता हुआ भी अवगुणों में फंस जाता है जो दीपक हाथ में पकडे हुए भी कुंए में गिर पड़े उसकी कुशल कैसी?