रात गंवाई सोय कर दिवस गंवायो खाय।
हीरा जनम अमोल था कौड़ी बदले जाय।
रात सो कर बिता दी, दिन खाकर बिता दिया हीरे के समान कीमती जीवन को संसार के निर्मूल्य विषयों की - कामनाओं और वासनाओं की भेंट चढ़ा दिया - इससे दुखद क्या हो सकता है ?