DOHA 168

जिही जिवरी से जाग बँधा, तु जनी बँधे कबीर।

जासी आटा लौन ज्यों, सों समान शरीर।

MEANING

जिस भ्रम तथा मोह की रस्सी से जगत के जीव बंधे है। हे कल्याण इच्छुक! तू उसमें मत बंध। नमक के बिना जैसे आटा फीका हो जाता है। वैसे सोने के समान तुम्हारा उत्तम नर - शरीर भजन बिना व्यर्थ जा रहा हैं।