DOHA 158

इष्ट मिले अरु मन मिले, मिले सकल रस रीति।

कहैं कबीर तहँ जाइये, यह सन्तन की प्रीति।

MEANING

उपास्य, उपासना-पध्दति, सम्पूर्ण रीति-रिवाज और मन जहाँ पर मिले, वहीँ पर जाना सन्तों को प्रियकर होना चाहिए।