मनहिं मनोरथ छांडी दे, तेरा किया न होइ।
पाणी मैं घीव नीकसै, तो रूखा खाई न कोइ।
मन की इच्छा छोड़ दो।उन्हें तुम अपने बल पर पूरा नहीं कर सकते। यदि जल से घी निकल आवे, तो रूखी रोटी कोई भी न खाएगा!