हरिया जांणे रूखड़ा, उस पाणी का नेह।
सूका काठ न जानई, कबहूँ बरसा मेंह।
पानी के स्नेह को हरा वृक्ष ही जानता है। सूखा लकड़ी क्या जाने कि कब पानी बरसा? अर्थ सहित व्याख्याात सहृदय ही प्रेम भाव को समझता है। निर्मम मन इस भावना को क्या जाने ?