DOHA 241
कबीर हमारा कोई नहीं हम काहू के नाहिं।
पारै पहुंचे नाव ज्यौं मिलिके बिछुरी जाहिं।
MEANING
इस जगत में न कोई हमारा अपना है और न ही हम किसी के! जैसे नांव के नदी पार पहुँचने पर उसमें मिलकर बैठे हुए सब यात्री बिछुड़ जाते हैं वैसे ही हम सब मिलकर बिछुड़ने वाले हैं। सब सांसारिक सम्बन्ध यहीं छूट जाने वाले हैं